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Tuesday 13 March 2012

खनन माफिया से टकराने की कीमत

खनन माफिया से टकराने की कीमत अब एक युवा ईमानदार आईपीएस अधिकारी को जान देकर चुकानी पड़ी है। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बानमोर में जांबाज पुलिस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह की हत्या से जुड़ी यह घटना बताती है कि भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों की व्यवस्था के भीतर कितनी गहरी पैठ है कि वे अपना हित साधने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

इस युवा अधिकारी का कुसूर सिर्फ यह था कि उन्होंने इस इलाके में हो रहे अंधाधुंध अवैध खनन पर ऐतराज किया था, मगर बलुआ पत्थर से लदी एक ट्रैक्टर ट्रॉली के डाइवर को यह नागवार गुजरा और उसने उन्हें रौंद दिया, वह भी पुलिस चौकी से महज 500 मीटर दूर। मध्य प्रदेश के इस हिस्से से अवैध खनन की खबरें पहले भी आती रही हैं।

चंबल के इस इलाके में रेत और बलुआ पत्थर की बेशुमार खदानें हैं, जहां माफिया ने अपना पूरा तंत्र कायम कर रखा है। अवैध खनन से राजकीय संपदा को तो नुकसान हो ही रहा है, पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है। नरेंद्र यहां महीने भर पहले पदस्थ हुए थे, और अल्पावधि में ही उन्होंने अवैध खनन में लिप्त दर्जनों वाहन जब्त किए थे।

शिवराज सिंह चौहान सरकार भले ही किसी साजिश से इनकार कर रही है, मगर जैसा कि दिवंगत अधिकारी के पिता ने आरोप लगाया है, उन्हें स्थानीय स्तर पर पुलिस और अन्य विभागों का सहयोग नहीं मिल रहा था। हाल ही में इस अधिकारी की गर्भवती आईएएस पत्नी का तबादला भी राजनीतिक दबाव में किया गया था। यह इसलिए भी चिंता की बात है, क्योंकि खनन माफिया ने जिस तरह अपना जाल बिछाया है, उसे भेद पाना किसी भी ईमानदार अधिकारी के लिए बहुत मुश्किल है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह सब राजनीतिक संरक्षण के बिना संभव ही नहीं!

आखिर गोवा से लेकर बेल्लारी तक यह देखा ही जा चुका है कि अवैध खनन का कारोबार चलता कैसे है। चिंताजनक यह भी है कि हाल के महीनों में भ्रष्टाचार और घोटालों पर काफी हंगामा होने के बावजूद आपराधिक तत्वों पर अंकुश नहीं लग पाया है। आखिर इससे पहले एस मंजूनाथ और सत्येंद्र कुमार दुबे जैसे युवा और प्रतिभाशाली अधिकारियों को भी भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत जान देकर ही चुकानी पड़ी थी।

मालेगांव में भी एक अधिकारी को तेल माफिया ने जिंदा जला दिया था। सवाल है कि हमारी व्यवस्था में ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? न्यायिक जांच तो ठीक है, मगर माफिया के राजनीतिक गठजोड़ पर कब चोट की जाएगी?
(लेख : अमर उजाला हिंदी समाचार पत्र से)

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