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Monday 12 March 2012

आमदनी अठन्नी और उधार करोड़ों का

दैनिक भास्कर प्री बजट सीरीज :-पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लचर प्रदर्शन के बाद अब नजरें टिकी हैं 16 मार्च के वित्त मंत्री के भाषण पर। यूपीए सरकार की तरह देश की आर्थिक स्थिति भी दबाव में है। ऐसे में प्रणबदा क्या रास्ता लेते हैं - 2014 की खातिर वोट जुटाने के लिए लोक लुभावन बजट निकालते हैं या चरमराती अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के उपाय करते हैं। बजट के दिन चर्चा सिर्फ करों पर होती है। आम आदमी या नौकरीपेशा लोगों - जो करदाता हैं - के लिए यह समझना जरूरी है कि सरकार कभी करों को कम क्यों नहीं करती। क्यों कीमतें आमदनी के मुकाबले ज्यादा तेजी से भाग रही हैं? आर्थिक तेजी के बिना नौकरीशुदा या कारोबारियों की आय क्यों नहीं बढ़ती? इसलिए यह जानना जरूरी है कि सरकार आपका पैसा कहां और कैसे खर्च कर रही है, क्या इससे आपका कल बेहतर होगा? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हम सीरीज शुरू कर रहे हैं। पहली कड़ी में हम समझा रहे हैं कि सरकार की आमदनी और उधारी पर किस तरह बजट प्रबंधन निर्भर करता है।
सरकार के खाते सिर्फ आय से नहीं चलते। सरकार के पास जब पैसे की कमी होती है तब वह या तो और पैसा छाप सकती है या उधार ले सकती है। जब सरकार ज्यादा पैसे छापती है तो अर्थव्यवस्था में तरलता आती है और हर चीज के दाम बढ़ते हैं। इसलिए सरकार आय और व्यय की खाई को उधारी से पाटती है। थोड़ा बहुत हो तो ठीक है, मगर सरकार पूरी तरह से उधार पर निर्भर हो जाए तो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा नहीं है।

यूपीए सरकार ने 2008 से खर्च पर अंकुश लगाना बंद कर दिया है। 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान सरकार ने तय किया कि अर्थव्यवस्था को बूस्ट की जरूरत है। ऋण माफ किए गए, ग्रामीण अर्थव्यव-स्था में आय बढ़ाने के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम को बढ़ाया गया। एक्साइज ड्यूटी पर कैप लगाया गया ताकि उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके। इस दौरान सरकार ने उधार लेकर खर्च करना और गरीबों के नाम पर खर्च बढ़ाना एक उद्देश्य बना लिया। इसका असर अब सरकार के बजट पर हावी हो गया है। पिछले साल यानी 2011-12 के बजट में सरकार का सबसे बड़ा खर्च किसी सब्सिडी, विकास कार्य या इन्फ्रास्ट्रक्चर पर नहीं, बल्कि ब्याज के भुगतान पर हुआ। सरकार ने इस मद में 2.68 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया था। तोड़ें तो यह आंकड़ा आता है 2,67,986,00,000,00 जो सिर्फ ब्याज में जाएगा। यह अनुमान इस बात पर निर्भर था कि अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और टैक्स वसूली में तेजी रहेगी। मगर पिछले छ: महीने में अर्थव्यवस्था हिल गई है।

कर राजस्व लगातार नीचे आ रहा है। जनवरी तक सिर्फ 4.58 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह हुआ जो पूरे वित्त वर्ष के अनुमान से 2.06 लाख करोड़ कम है। यह कमी सरकार ने कर्ज लेकर पूरी की है।
गैर-कर राजस्व भी करीब 35,000 करोड़ कम रहने का अनुमान है।उधार बढ़ रहा है। इसका असर विकास पर भी पड़ता है, क्योंकि जब सरकार खुद लगातार इतना कर्ज उठा रही है तो निजी क्षेत्र अपने निवेश के लिए कहां से कर्ज लेगा। सरकार जब कर्ज लेती है, बैंक और नॉन बैंकिंग कंपनियां सरकारी ट्रेजरी बिल में निवेश करती हैं। यह निवेश रिस्क-फ्री माना जाता है, जबकि कंपनी को उधार देने में जोखिम होता है। ब्याज दरें वैसे ही रिकॉर्ड स्तर पर हैं। इस माहौल में अगर सरकार निजी कंपनियों से ऋण के लिए स्पर्धा करे तो निजी क्षेत्र में निवेश नहीं होगा। अभी ऐसा ही हो रहा है। सरकार की जरूरत को देखते हुए उसके लिए भी ब्याज दरें लगातार बढ़ रही हैं। निजी क्षेत्र निवेश नहीं कर पा रहा क्योंकि उसे कर्ज आसानी से और सस्ती दर पर नहीं मिल रहा।
मगर सरकार का खर्च संपत्ति या कैपेसिटी बिल्डिंग में नहीं हो रहा है। इसलिए यह निश्चित है कि आगे जाकर अर्थव्यवस्था को कोई खास फायदा नहीं होगा। यह उसी तरह है जैसे कोई उधार लेकर सिर्फ अपने रोज के खर्चे में उसे व्यय करता हो। समझदार व्यक्ति अगर उधार लेता है तो उसे घर बनाने या कोई धंधा शुरू करने में करता है। जो उधार से आय का स्रोत शुरू करते हैं वही उधार चुका पाते हैं। जो नहीं कमाते वह उधारी के चक्र में फंस जाते हैं। देश भी जब ऐसे चक्र में फंसते हैं तो दिवालिया हो जाते हैं। ग्रीस का उदाहरण हमारे सामने है। अगली कड़ी में पढ़ेंगे कि क्या सरकार सही जगह पर सही तरह से खर्च कर रही है?
- लेख From :  दैनिक भास्कर

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