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Monday 12 March 2012

किसानों की आत्महत्या

मध्यप्रदेश : भोपाल : सरकार के खेती को फायदा का धंधा बनाने के तमाम दावों के बीच किसानों की आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रही है। बीते एक साल में साढ़े आठ सौ से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर जीवन लीला समाप्त कर ली। इसमें आदिवासी बहुल आलीराजपुर सबसे आगे रहा है। यहां 93 किसानों ने आत्महत्या की है। किसानों के अलावा करीब 11 सौ खेतीहर मजदूरों ने भी मौत को गले लगाया है। एक जनवरी 2011 के बाद से अब तक प्रदेश में कुल सात हजार 94 आत्महत्याएं हो चुकी हैं। जबकि 233 लोगों की खुदकुशी की कोशिश नाकाम रही।


यह खुलासा विधानसभा में गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता की ओर से रामनिवास रावत के सवाल के लिखित जवाब में हुआ है। गृहमंत्री ने बताया कि किसानों की आत्महत्या की ज्यादा घटनाएं आलीराजपुर (93)झाबुआ (65), कटनी (53), रीवा (75), सतना (63) और बैतूल (57) में सामने आई हैं। सालभर में कुल 14 किसानों ने आत्महत्या की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। वहीं श्योपुर, दतिया, टीकमगढ़, इंदौर, देवास, सिवनी और राजगढ़ ऐसे जिले हैं जहां किसान ने जीवन समाप्त करने का एक भी प्रकरण सामने नहीं आया। कृषि मजदूरों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटना सीधी (92) में सबसे ज्यादा हुई हैं। जबलपुर में (84), शहडोल में (68) और कटनी में 60 प्रकरण दर्ज किए गए हैं। गृहमंत्री ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या के मामले में प्रदेश का वार्षिक औसत 13 सौ 79 और देश में स्थान 17वां रहा है। इसी तरह 2009 में औसत संख्या 13 सौ 95 और स्थान 14वां और 2010 में औसत संख्या 12 सौ 37 व स्थान 15वां रहा है। 2011 के आंकड़ों का अभी संकलन किया जा रहा है।


जेल में 95 कैदी मरे

गृहमंत्री ने बताया कि पुलिस हिरासत में कुल 12 मृत्यु हुई हैं। इनमें से एक कृषि मजदूर रहा है। जबकि जेल में सालभर के दौरान 95 मौत के प्रकरण सामने आए हैं। इनमें तीन किसान और पांच मजदूर हैं। जेल में मृत्यु के सर्वाधिक 27 मामले उज्जैन में सामने आए हैं। जबकि इंदौर में 16 और ग्वालियर  में नौ ऐसे प्रकरण बने हैं। ग्वालियर में ही पुलिस अभिरक्षा में तीन की मृत्यु भी हुई है।

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